जुगुनू कविता | Jugnu Poem

जुगुनू

रात का, चांदनी और तारो के टिमटिमाने से रिश्ता पुराना है। हर बचपन के कुछ किस्से जरूर जुड़े हैं चांद और सितारों से, कभी दादाजी के गोद में, आंगन में बैठ आसमा को झिलमिल चांदनी चादर ओढ़े भी पाया है।

लेकिन रात का साथ जब ये दोनों ना दें तब कौन हमारे किस्सों में जगमगाया है !!

अंधेरों में उड़ते “उजाले” याद हैं? शायद याद होगा आंगन में उनके पीछे भागना, भाग कर मासूम हाथों का उनको पकड़ना।

क्या याद है खेतों में इन उड़ते हुए “उजाले” के बीच दादुर की

टर्टर?

हां ये उड़ते उजाले, अंधरे में होते बन्द खुले उजाले हैं “जुगुनू”।

– मनीषा शैली

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