क्या आपके साथ भी ऐसा होता है कि किसी बात के कारण या कोई घटना घटने के बाद आप लम्बे समय तक उस बारे में सोचते रहते हैं?
एक ही जगह पर घंटो बैठकर, सब काम छोड़कर आप एक बात के बारे में सोचते रहते हैं और फिर परेशान होते हैं? कई बार ऐसा भी होता होगा कि उस बारे में लम्बे समय तक सोचने के बाद आप खुद को यह समझाते होंगे कि यह सब सोचने का कोई फ़ायदा नहीं है, इस बात को जाने दो लेकिन वो बात एक बार फिर आपके दिमाग में आती है और आप एक बार दोबारा से उस बारे में सोचने लगते हैं।
बहुत बार ऐसा भी होता होगा कि आधी रात में आप नींद से जागते होंगे या सुबह आपकी नींद जल्दी खुल जाती होगी और आप बिस्तर पर लेटे- लेटे ही किसी बात के बारे में सोच सोचकर परेशान होते रहते होंगे। यदि ऐसा है तो आप ज़रुरत से ज़्यादा सोचते हैं या overthinking करते हैं जो सही नहीं है।
Overthinking या ज़रुरत से ज़्यादा सोचने का क्या अर्थ है ?
एक व्यक्ति के लिए सोचना स्वाभाविक है। किसी भी बात, व्यक्ति या घटना के बारे में सोचना गलत नहीं है लेकिन यदि आप किस बात, व्यक्ति या घटना को पकड़कर बैठ जाएं और लगातार उसके बारे में सोचने लगे तो इसे overthinking या ज़रुरत से ज़्यादा सोचना कहते हैं जो हानिकारक है। किसी भी बात या परिस्थिति के बारे में लगातार सोचने से एक व्यक्ति का सिर्फ समय व्यर्थ होता है और उसकी परेशानी भी बढ़ती है इसलिए overthinking या ज़रुरत से ज़्यादा सोचने की आदत को ख़त्म करना बहुत ज़रूरी है।
क्या आप overthinking कर रहे हैं यानी ज़रुरत से ज़्यादा सोच रहे हैं ?
ऐसा अक्सर होता है कि एक व्यक्ति overthinking करता है या ज़रुरत से ज़्यादा सोच रहा होता है लेकिन उसे इस बात का एहसास ही नहीं हो पाता कि वो overthink कर रहा है। यदि आप किसी भी बात या परिस्थिति के बारे में सोचकर उसका समाधान निकालने का प्रयास कर रहे हैं तो यह एक अच्छी बात है लेकिन वहीं यदि आप किसी ऐसी बात के बारे में निरंतर सोच रहे हैं जो बीत चुकी है या जिसका आप समाधान नहीं निकाल पा रहे हैं तो आप overthink कर रहे हैं यानी ज़रुरत से ज़्यादा सोच रहे हैं।
उधारणतः यदि आपका अपने पति या पत्नी के साथ रिश्ता ठीक नहीं चल रहा और आप ये सोचते हैं कि समस्या क्या है, इसका समाधान कैसे निकाला जा सकता है, किस समय एक दूसरे से इस बारे में बात करनी चाहिए तो इस तरह से सोचना अच्छा है क्यूंकि आप समाधान निकालने के लिए इतना सोच विचार कर रहे हैं, ये सोचने का सकारात्मक तरीका है और ऐसा करने से आपको अपने सवाल के जवाब भी मिलेंगे और साथ ही आपके रिश्ते में जो उतार चढ़ाव है आप उस पर भी काम कर सब ठीक कर सकते हैं।
वहीँ यदि आप ये बात लेकर बैठ जाएं कि आपके पति या पत्नी के साथ आपका रिश्ता ठीक क्यों नहीं चल रहा है, ये कब ठीक होगा, आपने ऐसा क्या किया है और अपनी समस्या का समाधान निकालने के बारे में कुछ नहीं सोचते तो यह है आपकी नकारात्मक सोच यानी ज़रुरत से ज़्यादा सोचना। ऐसा करने से आपकी परेशानी सिर्फ बढ़ती चली जाएगी और आप अंदर ही अंदर घुटते चले जाएंगे। किसी भी तरह कि सोच यदि आपको परेशानी दे रही है तो समझ जाएं कि आप overthinking कर रहे हैं या ज़रुरत से ज़्यादा सोच रहे हैं।
क्या किसी भी बात या घटना के बारे में सोचना गलत है ?
जब भी कोई व्यक्ति कोई बात कह देता है या आपके साथ कोई घटना घटती है तो उस बारे में सोचना स्वाभाविक है। एक व्यक्ति का मस्तिष्क हमेशा सोच विचार करता है और सोच विचार करने के बाद ही आप एक निष्कर्ष पर आ पाते हैं लेकिन यदि आप किसी भी बात या घटना के बारे में ज़रुरत से ज़्यादा सोचते हैं और इस तरह से सोचते हैं कि वो आपको परेशानी दे रही है तो ये गौर करने वाली बात है।
सोचना तब अच्छा है जब वो एक सही दिशा में हो लेकिन यदि overthinking या ज़रुरत से ज़्यादा सोचने के कारण आप परेशान हो रहे हैं, नकारात्मकता को आकर्षित कर रहे हैं, ना ढंग से खाना खा पाते हैं ना ठीक से सो पाते हैं तो यह गलत है।
ज़्यादातर एक व्यक्ति उन बातों के बारे में ज़रुरत से ज़्यादा सोचने लगता है जो उसने किसीसे सुनी हो। उधारणतः आपके कुछ दोस्त हैं। अब एक दिन यदि आपका एक दोस्त आकर आपको ये बता दे कि आपके कुछ दोस्त आपकी बुराई कर रहे थे तो आप दुखी हो जाएंगे और फिर सोचने लगेंगे कि आपने ऐसा क्या किया जो वो आपकी बुराई कर रहे थे, आप तो हमेशा ही उनके साथ अच्छा व्यवहार रखते हैं।
आपकी परेशानी और बढ़ जाती है जब आप यह सोचते हैं कि आप उनसे जाकर पूछ भी नहीं सकते कि उन्होंने आपकी बुराई क्यों की क्यूंकि आपके दोस्त ने उन्हें बताने से मना किया है।
अब देखिये, ना तो आपने ये सब अपनी आँखों से देखा ना सुना लेकिन ज़रुरत से ज़्यादा सोच लिया और मान भी लिया कि आपके दोस्तों ने आपकी बुराई की। इस कारण आपका मन भी दुखी हुआ, समय भी बर्बाद हुआ और आपके दिल में उनके लिए खटास भी भर गयी। इन सब बातों में कुछ भी सकारात्मक नहीं।
आप जो सोचते हैं वो समस्या केंद्रित है या समाधान केंद्रित ?
सोचता हर कोई व्यक्ति है लेकिन जो सवाल आपको अपने आप से पूछना है वो यह है कि आप जो भी सोच रहे हैं वो समस्या केंद्रित है या समाधान केंद्रित क्यूंकि यदि आपकी सोच समस्या केंद्रित है तो इसका अर्थ है कि आप ज़रुरत से ज़्यादा सोच रहे हैं।
समस्या केंद्रित सोच का उदाहरण : मान लीजिये एक व्यक्ति है जिसे नौकरी नहीं मिल रही। अब नौकरी ना मिलने के कारण उस व्यक्ति के दिमाग में बहुत से सवाल आने लगेंगे कि मुझे नौकरी क्यों नहीं मिल रही, मुझे नौकरी कब तक मिलेगी, यदि नौकरी नहीं मिली तो पैसे कहाँ से आएंगे, खर्चा कैसे चलेगा, भविष्य का क्या होगा। यह सोच समस्या केंद्रित सोच है क्यूंकि ऐसा सोचने के बाद उस व्यक्ति के मन में सिर्फ और सिर्फ सवाल हैं कोई भी जवाब या समाधान नहीं।
समस्या केंद्रित सोच खतरनाक इसलिए है क्यूंकि एक के बाद एक व्यक्ति के मन में सवाल बढ़ते चले जाते हैं और फिर एक समय ऐसा आता है जब वो व्यक्ति एक भी सवाल का जवाब ना मिलने के कारण एकदम टूट जाता है और हिम्मत हार देता है इसलिए सही समय पर ही इस ज़रुरत से ज़्यादा सोचने की समस्या को खत्म करना महत्वपूर्ण है।
overthinking या ज़रूरत से ज़्यादा सोचने का नुक्सान यह है कि जब हम ज़रुरत से ज़्यादा सोचने लगते हैं तो हम यह भूल जाते हैं कि जो भी हम सोच रहे हैं वो अधिकतर काल्पनिक होता है और हम उसे वास्तविक समझने लगते हैं और फिर अपने भीतर डर, गुस्सा, दुःख और ना जाने कितने ऐसे नकारात्मक भावों को जन्म देते हैं।
समस्या केंद्रित सोच रखने की जगह समाधान केंद्रित सोच रखें। जैसे उदाहरण में व्यक्ति नौकरी ना लगने के कारण परेशान है, वो यदि हिम्मत ना हारकर नौकरी ढूंढ़ता रहे, पैसा कमाने के लिए जो नौकरी वो ढून्ढ रहा है उसके अलावा दूसरे विकल्प भी ढूंढें और उस तरफ काम करने लगे तो वह उत्साह और सकारात्मकता की ओर बढ़ने लगेगा और उसके मन में जो भी परेशानी है वो भी धीरे धीरे काम होने लगेगी ओर फिर खत्म हो जाएगी। काश ! ये हो जाता या काश !वो हो जाता इन सब बातों से दूर रहे।
ये सोचें कि आपकी समस्या का समाधान कैसे निकल सकता है। समस्या है ये तो आपको पता है तो जो है उसके बारे में सोचने का कोई लाभ नहीं, उसे दूर कैसे करना ये सोचना शुरू करें। ज़रुरत से ज़्यादा सोचेंगे तो इसका असर आपके आज पर और भविष्य पर भी बढ़ेगा, साथ ही आपके स्वाभाव में भी बदलाव आने लगेगा ।
कोई गलती करने पर जब माफ़ी न मिले तो इस बारे में ज़रुरत से ज़्यादा सोचना कैसे बंद करें ?
एक बात समझना ज़रूरी है कि कोई भी व्यक्ति परफेक्ट या संपन्न नहीं होता हर व्यक्ति के भीतर कुछ बुराई भी होती है और कुछ अच्छाई भी। कोई भी गलती हो जाने के बाद ज़रूरी है गलती का एहसास होना, उसका पछतावा होना और जिस भी व्यक्ति को आपकी गलती की वजह से हानि या दुःख पहुंचा है, उस व्यक्ति से माफ़ी मांगना।
अब कई बार ऐसा होता है कि आपको अपनी गलती का एहसास होता है और आप माफ़ी भी मांगते है, एक बार नहीं कई बार माफ़ी मांगते हैं लेकिन जब सामने वाला व्यक्ति आपको माफ़ करने के लिए तैयार नहीं होता, या जीवन भर आपको माफ़ नहीं करता या हमेशा आपको आपकी गलती याद दिलाता है तो आप निरंतर यही सोचते रहते हैं कि आपको माफ़ी कैसे मिलेगी, आपकी गलती कभी नहीं सुधर सकती और आप हमेशा खुद को एक दोषी की तरह देखते हैं।
यह गलत है। यदि आपने अपनी गलती की माफ़ी मांगी है लेकिन सामने वाला व्यक्ति आपको माफ़ करने के लिए तैयार नहीं तो उसकी माफ़ी पाना आपके हाथ में नहीं है। यदि वह व्यक्ति जीवन भर अपने दिल में आपकी गलती के कारण क्रोध या घृणा की भावना को लेकर बैठा है तो इसमें आप कुछ नहीं कर सकते।
आपको यह समझना होगा कि गलती का एहसास होना और माफ़ी माँगना यह दर्शाता है कि आपको पछतावा है और यदि सामने वाले व्यक्ति को यह बात समझ नहीं आ रही है तो उस बात को वहीँ पर छोड़ दें, खुद को माफ़ करें और आगे बढ़ें क्यूंकि जो आपके हाथ में नहीं उसके बारे में सोचने का कोई मतलब नहीं।
overthinking या ज़रुरत से ज़्यादा सोचने के नुक्सान
overthinking या ज़रुरत से ज़्यादा सोचने के एक नहीं बल्कि कई नुक्सान हैं जैसे:
1. | ज़रुरत से ज़्यादा सोचने वाला व्यक्ति बहुत थकान महसूस करता हैं। |
2. | ज़रुरत से ज़्यादा सोचने वाला व्यक्ति अधिकतर दुखी महसूस करता है। |
3. | ज़रुरत से ज़्यादा सोचने वाले व्यक्ति के लिए किसी भी काम में ध्यान लगाना मुश्किल होता है। |
4. | ज़रुरत से ज़्यादा सोचने वाले व्यक्ति को सही समय पर या ठीक से नींद नहीं आती या नींद आ भी जाए तो नींद पूरी नहीं होती। |
5. | ज़रुरत से ज़्यादा सोचने वाले व्यक्ति के कई काम रुक जाते हैं। |
6. | ज़रुरत से सोचने वाले व्यक्ति के दिमाग की रचनातनक शक्ति भी कम होती है। |
ज़रुरत से ज़्यादा सोचने का कारण है ‘मैं‘ की भावना
यह तो आप सभी मानते होंगे कि हम सिर्फ उन्ही बातों के बारे में overthink यानी ज़रुरत से ज़्यादा सोचते हैं जिनका सम्बन्ध हमसे होता है जैसे उसने मेरे बारे में ऐसा क्यों कहा, उसने मुझे गुस्से से क्यों देखा, वो मुझसे बात क्यों नहीं कर रहा है, उसने मुझसे सही तरह से बात क्यों नहीं की आदि।
यदि वही बात किसी और के बारे में होती है तो हम overthink नहीं करते और कई बार तो उस व्यक्ति को समझाते भी हैं कि ‘छोड़ ना क्या ही फर्क पड़ता है’, कुछ देर बाद ही उस बात को भूल जाते हैं और यदि नहीं भी भूलते तो भी उस बारे में सोचकर अपना समय बर्बाद नहीं करते लेकिन बात जब अपनी हो तब ज़रूरत से ज़्यादा फर्क पड़ने लगता है, इसका कारण है ‘मैं’ की भावना जो एक व्यक्ति को overthink करने पर मजबूर करती है।
यदि हम इस ‘मैं’ की भावना को ही ख़त्म कर दें तो हमारे दिमाग में तरह- तरह के सवाल उत्पन्न ही नहीं होंगे। यही सब सोचकर एक व्यक्ति का मन दुखी होने लगता है अर्थात आपके दुःख का कारण कोई और नहीं आप खुद है। इस मैं की भावना को त्यागकर यदि दूसरों की ख़ुशी को देखकर खुश होने लगेंगे तो आप भी उनकी ख़ुशी का हिस्सा बन जाएंगे और खुद को भूल जाएंगे।
यदि आप खुश रहना चाहते हैं और चाहते है कि आपका जीवन आसानी से कटे तो इस ज़रुरत से ज़्यादा सोचने की आदत को धीरे धीरे काम करके पूरी तरह से खत्म करने की कोशिश करें।
यह भी पढ़े :
FAQ’s
Q. क्या ओवरथिंक करना एक बीमारी है?
Ans: जी नहीं ओवरथिंक करना एक बीमारी नहीं परन्तु ओवरथिंक करने से आपके मष्तिष्क पर बहुत जोर पड़ता है ओर आगे चलकर यह एक बीमारी का रूप भी ले सकती।
Q. ओवरथिंक करने की आदत को कैसे रोकें ?
Ans: ओवरथिंकिंग रोकने के लिए आप किसी भी बात को अपने मन में न लगाये और सारा ध्यान अपनी साँसों पर केन्द्रित करें।
Q. दिमाग ज्यादा क्यों सोचता है?
Ans: दिमाग का काम ही है सोचना आप अपने आप को इतना मजबूत बनाएं की आपका दिमाग आपके कंट्रोल में रहे।
Q. दिमाग की बीमारी कैसे होती है?
Ans: दिमाग की बीमारी होने के कई कारण हो सकते हैं इनमे से मुख्य है ओवरथिंक करना।
Q. दिमाग को शांत कैसे करें?
Ans: जब भी आपका दिमाग आपको अशांत लगे आपको तुरंत अपना सारा ध्यान अपनी साँसों पे केन्द्रित करना है आप फिर एकदम शांत महसूस करेंगे।