याद है कैसे बचपन में तुम अपनी माँ का हाथ पकड़कर गुल्लक की दुकान पर जाते थे,
वो छोटे-बड़े, लाल, पीले और गुलाबी गुल्लक तुम्हे कितने भाते थे।
जब भी गुल्लक बेचने वाला आवाज़ लगाता तो तुम दौड़कर बाहर जाते थे,
दादाजी की ऊँगली पकड़ तुम गुल्लक खरीदकर ही आते थे।
बहुत देर तक उस गुल्लक को निहारकर तुम मन ही मन मुस्कुराते थे,
फिर उस नई-नई खाली गुल्लक को भरने के लिए घर के हर सदस्य के पास लेकर जाते थे।
कभी तुम छोटे गुल्लक के लिए ज़िद्द करते तो कभी बड़े गुल्लक के लिए,
चाहे वो गुल्लक छोटी हो या बड़ी , हर गुल्लक थी बहुत से सपने लिए।
तुम्हारे लिए, वो गुल्लक मात्र मिट्टी की बनी हुई कोई वस्तु नहीं थी,
कभी 25 पैसे से, कभी 50 पैसे से तो कभी 1 या 2 रुपये के सिक्को से भरी थी।
जब भी कभी पैसे मिलते थे तो बिना समय गवाएं उन्हें तुम उस गुल्लक में डाल दिया करते थे,
इस डर से कि कहीं मिट्टी की वो गुल्लक टूट ना जाए, तुम उसे बहुत संभालकर रखा करते थे।
याद है कैसे बार बार तुम उस गुल्लक को हिलाया करते थे,
उसके भीतर खनक रहे सिक्को की आवाज़ सुन कैसे खुश हो जाया करते थे।
जब उस गुल्लक को भरने में बहुत समय लगता तो तुम मायूस हो जाया करते थे,
जब वो गुल्लक जल्दी भर जाती तो तुम ख़ुशी से झूम जाया करते थे।
गुल्लक पूरी भर जाने पर अब तुम असमंजस में पड़ जाते कि गुल्लक तोड़ें या नहीं,
क्योंकि गुल्लक के अंदर जो पैसे जमा किये थे उन पैसों से अपनी ख्वाइशों जो पूरी करनी थी तुम्हे,
पर साथ ही ये दुःख भी था कि जिस गुल्लक ने अपने भीतर तुम्हारे सारे सपने रुपी सिक्के रखे थे वो टूटने पर क्या कोई सुख मिलता तुम्हे।
लम्बे समय तक सोच विचार करने के बाद आखिर वो गुल्लक तुमने तोड़ ही डाली,
उस टूटी हुई गुल्लक से सारे पैसे निकालकर अब वो गुल्लक थी बिखरी हुई और खाली।
गुल्लक से निकले हुए उन सिक्को को देख जैसे तुमने थी सारी दुनिया जीत डाली,
कुछ समय बाद ही तुम एक नयी गुल्लक ले आये जो पुरानी, टूटी हुई गुल्लक कि तरह ही थी खाली।
दोनों गुल्लकों में अंतर बस इतना था कि एक गुल्लक में तुमने धीरे धीरे सिक्के जमा करके बहुत से सपने बुने थे,
और दूसरी गुल्लक को तोड़ने पर, उसके भीतर के सिक्के गिनकर, तुम अपने बुने हुए सपनो को पूरा करने में जुटे थे।
सपनें बहुत बड़े नहीं थे तुम्हारे, थे तो वो बहुत छोटे ही,
लेकिन आज जब भी तुम पीछे मुड़कर देखोगे तो पाओगे कि उन्हें पूरा करने पर ख़ुशी बहुत मिलती थी चाहे वो सपने छोटे ही सही।
तुम्हारा जीवन भी मिट्टी के उस गुल्लक की तरह ही है जिसमे तुमने कई सपने संजोये है,
उन सपनों में से कुछ सपने तुम पूरे कर पाए और कुछ तुमने खोये हैं।
जिस तरह उस मिट्टी के गुल्लक के टूटने से तुम डरते थे,
उसी तरह इस जीवन के टूटकर बिखरने के ख्याल से आज तुम डरते हो,
अपनी छोटी -बड़ी ख्वाइशें पूरी करने के लिए उस गुल्लक की तरह अपने जीवन को हिम्मत, मेहनत और सपनों से भरते हो।
ये जीवन भी मिट्टी की गुल्लक है,
इसमें सुख हैं, दुख है और हर एक रंग है।
जिस तरह उस गुल्लक में सिक्के भरते थे,
उसी तरह अपने जीवन को भी खुशियों से भरो,
हर रोज़ सपने देखो और उन्हें पूरा करने की कोशिश करो।
कोई सपना अगर टूटकर बिखर भी गया तो दुखी ना होना,
जैसे एक गुल्लक के टूटने पर नयी गुल्लक में फिर से सपने संजोये थे, वैसे ही तुम भी सपने फिर से संजोना।
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